बयान-ए-शौक़ न कुछ अर्ज़-ए-इल्तिजा के लिए बस एक जल्वा दिखा दीजिए ख़ुदा के लिए बहुत सुनाए हैं अफ़्साने पारसाई के बस अब ज़बान न खुलवाईए ख़ुदा के लिए यहाँ ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत का तज़्किरा कैसा यहाँ तो दर्द भी मिलता नहीं दवा के लिए कहाँ तक आप की ज़ीनत पे जाँ निसार करें कहाँ तक आप को हम ख़ून दें हिना के लिए हर एक सम्त हैं इब्न-ए-ज़ियाद के पैकर ज़मीन ढूँडते फिरते हैं कर्बला के लिए हुज़ूर-ए-हुस्न 'ज़ुहूर' आँसूओं से काम लिया मिले न जब कहीं अल्फ़ाज़ मुद्दआ' के लिए