वो मेहरबानी-ए-यारान-ए-मेहरबाँ न कहो हमारे सामने माज़ी की दास्ताँ न कहो छुपाओ आँख के आँसू किसी बहाने से ये राज़-ए-दिल है इसे तो यहाँ वहाँ न कहो जो दिल दुखाए कभी दोस्त हो नहीं सकता जो रौंद डाले चमन उस को बाग़बाँ न कहो भटकता छोड़ दिया जिस ने सब को रस्ते में मुरव्वतन भी उसे मीर-ए-कारवाँ न कहो बहारें लूट रहे हैं तमाम वो 'अम्बर' हमें ये हुक्म ख़िज़ाँ को भी तुम ख़िज़ाँ न कहो