बज़्म-ए-उल्फ़त में अगर शामिल न थे हम तुम्हारी याद से ग़ाफ़िल न थे मेहरबाँ तू था हमारे हाल पर हम ही तेरे प्यार के क़ाबिल न थे लिख दिया तू ने वफ़ा को मेरे नाम क्या जहाँ में और अहल-ए-दिल न थे हम ने ही उलझा दिया हर बात को ज़िंदगी के मरहले मुश्किल न थे कर्ब की तकरार थी हर साँस में वर्ना हम ख़ुद अपने ही क़ातिल न थे हम रहे तूफ़ान-ए-ग़म से 'आश्ना' मौज की आग़ोश में साहिल न थे