दास्तान-ए-ग़म सुनाऊँ किस तरह ज़ख़्म-ए-दिल उन को दिखाऊँ किस तरह मेरे रोने पर लगी हैं बंदिशें आँख से आँसू बहाऊँ किस तरह वो वफ़ा के नाम से अंजान है दोस्ती उस से निभाऊँ किस तरह प्यार से जब उठ गया है ए'तिमाद जान की बाज़ी लगाऊँ किस तरह काग़ज़ी फूलों का गुलदस्ता लिए यार की महफ़िल में जाऊँ किस तरह प्यार का तोहफ़ा दिया जिस ने मुझे ऐसे मोहसिन को भुलाऊँ किस तरह 'आश्ना' था जो मिरे हर राज़ से ऐसे हमदम को भुलाऊँ किस तरह