दर्द तेरा मेरे दिल को बे-महाबा मिल गया या'नी ख़ुद क़तरे से आ कर आज दरिया मिल गया तुम ने देखा इक नज़र सब कुछ ही गोया मिल गया दर्द का दरमाँ मिला ग़म का मुदावा मिल गया आज क्यों आईना देखा जा रहा है बार बार सच बताओ क्या तुम्हें कोई तुम्हीं सा मिल गया देख लेना दास्तान-ए-दर्द की रंगीनियाँ आँसुओं में अपने अब ख़ून-ए-तमन्ना मिल गया सैंकड़ों सज्दे किए मेरी जबीन-ए-शौक़ ने जिस जगह पर आप का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिल गया कैसे कैसे जौहरों को पीस डाला चर्ख़ ने तेरे हाथों ऐ अजल मिट्टी में क्या क्या मिल गया दख़्ल शौक़-ए-दिल को था मेरी बला-नोशी में कुछ चश्म-ए-साक़ी की तरफ़ से कुछ इशारा मिल गया 'नामी'-ए-अफ़्सुर्दा शौक़-ए-जुस्तुजू दिल में नहीं वर्ना फ़र्त-ए-शौक़ ने जब उस को ढूँडा मिल गया