बे-अमल फूल-फल नहीं सकते जैसे मा'ज़ूर चल नहीं सकते आग गुलज़ार हो तो सकती है आग पर हम ही चल नहीं सकते हम से पहले चले तो हैं कुछ लोग हम से आगे निकल नहीं सकते बुत-कदे के हों या हरम के चराग़ बे-जलाए तो जल नहीं सकते कौन मानेगा अपनी सच्चाई हम हवाओं पे चल नहीं सकते लोग दुनिया बदलना चाहते हैं और ख़ुद को बदल नहीं सकते ख़ाक उजालों की तरह फैलेंगे जो चराग़ों सा जल नहीं सकते मौत अंजाम क्यों न हो 'ज़ेबा' हम इरादे बदल नहीं सकते