कोई नाकाम नहीं दीदा-ए-तर की मानिंद अश्क टपकें न अगर ख़ून-ए-जिगर की मानिंद हौसला है तो कभी शिकवा-ए-उफ़्ताद न कर पर्दा-ए-शब से उभर नूर-ए-सहर की मानिंद रात-दिन बर्क़-ए-बला रहती है मसरूफ़-ए-तवाफ़ घर किसी और का कब है मिरे घर की मानिंद बरतरफ़ सेहन-ए-चमन से मुझे करने वालो कौन काँटों को चुनेगा गुल-ए-तर की मानिंद आँख वाले तो ज़माने में बहुत हैं लेकिन किस ने देखा है तुझे मेरी नज़र की मानिंद कहकशाँ और तिरी राहगुज़र ना-मुम्किन हाँ मगर है ये तिरी राहगुज़र की मानिंद कोर-नज़रों से सिवा कोर-नज़र हैं 'ज़ेबा' ये जो आते हैं नज़र अहल-ए-नज़र की मानिंद