बीच यारों के तिरे नाम का चर्चा करना मुझ को आता ही नहीं प्यार को रुस्वा करना एक तूफ़ान सा सीने में उठाया करना याद है मुझ को तिरा छत से इशारा करना दूर बस्ती से हमारा कहीं तन्हाई में राह मिलने की शब-ओ-रोज़ ही पैदा करना सुब्ह आएगी तो जल्वे तिरे दिखलाएगी रात भर मेरा इसी मौज में जागा करना ख़्वाब आते थे मगर पल में बिखर जाते थे तुझ को पाना था सितारों की तमन्ना करना अहद-ओ-पैमाँ जो किया था तो निभाते जाते क्या कहूँ सीख लिया तुम ने किनारा करना