बे-क़रारी है बहुत ख़ुद से बे-क़रार भी है उस के होंटों तले इक़रार भी इंकार भी है दूँ सदाएँ जो पुकारा करूँ सब ना-मंज़ूर ख़ूब अंदर है अना इस लिए लाचार भी है दिल में क्या हादसा बेचैन किए रहता है जाने किस बात पे रंजूर ख़तावार भी है जिस की ख़ातिर मैं रही दूर ज़माने भर से मेरा दुश्मन है वही जानाँ मेरा प्यार भी है एक दिन लौट के आएगा यक़ीं है मुझ को सख़्त है आदमी यूँ भी ज़रा तहदार भी है फूल के जैसा है 'रौनक़' उसे मैं जानती हूँ ऐन लहजे में कड़क है कहीं तलवार भी है