चेहरे पे हुज़्न-ओ-रंज-ओ-अलम के निशाँ न थे हम रो रहे थे आँख से आँसू रवाँ न थे हर बात पे हम आप की ख़ामोश ही रहे पास-ए-अदब था वर्ना तो हम बे-ज़बाँ न थे पहले भी कुछ हुईं थीं ग़लत-फ़हमियाँ मगर इस तरह लोग हम से कभी बद-गुमाँ न थे बातों से हम तो दुनिया को धोका न दे सके सीधी सी बात कहते थे जादू बयाँ न थे यक-बारगी ये लुत्फ़-ओ-करम हो रहा है क्यों इस तरह आप हम पे कभी मेहरबाँ न थे मुश्किल से हम ने मंज़िल-ए-मक़्सूद पाई है बैठे हमारी ताक में दुश्मन कहाँ न थे