बे-ज़मीरी का पता देता रहा ज़र्फ़ था ख़ाली सदा देता रहा देखने की हम ने ज़हमत ही न की हाथ में वो आईना देता रहा चश्म-ए-नम रंज-ओ-मेहन के साथ साथ वक़्त हम को तजरबा देता रहा और क्या करता ग़रीबों का इलाज पढ़ के पानी पर दवा देता रहा सुन के वो करते रहे थे अन-सुनी फिर भी मैं उन को सदा देता रहा ऐ 'सदा' मुझ को तो बस मेरा यक़ीं हर क़दम पर हौसला देता रहा