दुख सहे दूसरों की ख़ुशी के लिए ये बड़ी बात है आदमी के लिए तब कहीं जा के हर सू उजाला हुआ ख़ाक शम्अ' हुई रौशनी के लिए फ़िक्र-ए-बाँग-ए-दरा हम को ख़ुद चाहिए क़ाफ़िले कब रुके हैं किसी के लिए जिस तरफ़ देखिए कितने झूटे ख़ुदा सफ़-ब-सफ़ बैठे हैं बंदगी के लिए ऐ मिरी ज़िंदगी मैं ने तेरा भरम खो दिया लज़्ज़त-ए-ज़िंदगी के लिए राहतें ग़म के बाद आती हैं ऐ 'सदा' ग़म बड़ी चीज़ है आदमी के लिए