बेड़ियाँ अपने ऐ असीर न देख हाथ उठा हाथ की लकीर न देख अक़्ल रखता है तो समझ मफ़्हूम सिर्फ़ अल्फ़ाज़-ए-बे-नज़ीर न देख घर से निकला है जब दुआ देते कौन मुफ़्लिस है या अमीर न देख कोई ख़ूबी नज़र न आएगी मेरी तस्वीर ऐब-गीर न देख कौन सुन कर सदा न आएगा बंद दरवाज़ा ऐ फ़क़ीर न देख अज़्म का तीर ले के आगे बढ़ हाथ में क्या है उस के वीर न देख दोनों जानिब 'अलीम' खाई है साथ है कौन राहगीर न देख