बेगानगी के बाम से पल-भर उतर के देख मैं कौन हूँ मुझे भी ज़रा आँख भर के देख क्यूँ बद-गुमाँ है ख़ल्क़-ए-ख़ुदा तेरी ज़ात से लोगों में बैठ और ज़रा बात कर के देख ऐसी किरन कि जोड़ सके रिश्ता-ए-बदन इन ज़ुल्मतों में फ़ासले क़ल्ब-ओ-नज़र के देख दश्त-ए-बला में कितने बगूले हैं घात में मैं तो गुज़र चुका ज़रा तू भी गुज़र के देख ए'ज़ाज़-ए-ख़ुसरवी से न मेरी वफ़ा को नाप फ़ुर्सत मिले कभी तो मिरे ज़ख़्म सर के देख किस ज़हर के असर से उलझती है मेरी साँस दम भर धुआँ धुआँ सी फ़ज़ा में ठहर के देख 'शाहीं' वो गाँव फिर तिरी क़िस्मत में हो न हो बेहतर है ख़्वाब उजड़े हुए बाम-ओ-दर के देख