बे-हिसी पर हिस्सियत की दास्ताँ लिख दीजिए धूप से अब बर्फ़ पर आब-ए-रवाँ लिख दीजिए कातिब-ए-तक़दीर ठहरे आप को रोकेगा कौन जो भी अंकुर सर उठाए राएगाँ लिख दीजिए आप की आँखों में चुभ जाएगी वर्ना रौशनी हम चराग़ों के मुक़द्दर में धुआँ लिख दीजिए मुश्तहर हो जाऊँगा फ़िरक़ा-परस्ती के लिए मेरी पेशानी पे आप उर्दू ज़बाँ लिख दीजिए हम ग़रीबों से रिआ'यत की ज़रूरत ही नहीं सुब्हें दोज़ख़ हैं तो शामों को धुआँ लिख दीजिए आप तो शायद क़सम ही खा चुके तख़रीब की हर जगह धरती पे अब आतिश-फ़िशाँ लिख दीजिए