बेकार न जाएँगी अब वक़्त की तक़रीरें ज़ेहनों पे उभर आईं कुछ फ़िक्र की तहरीरें ऐ अहल-ए-सितम सुन लो पैग़ाम-ए-तग़य्युर हैं ज़िंदान-ए-तख़य्युल में बजती हुई ज़ंजीरें कब होंगी ख़ुदा जाने दीवारों पे आवेज़ाँ एहसास-ए-मोहब्बत की बिखरी हुई तस्वीरें हर शख़्स की ग़फ़लत को अब सामने ले आएँ सिमटी हुई तदबीरें ठहरी हुई तक़दीरें जो दिल का लहू पी कर बरसों में पलीं 'राजे' तारीक फ़ज़ाओं पर झपटें तो वो तनवीरें