जुनून-ए-इश्क़ में शौक़-ए-ज़ियाँ तक कौन पहुँचेगा यहाँ तक हम चले आए यहाँ तक कौन पहुँचेगा तुम्हारी बज़्म में ये सोच कर हम मुस्कुराए हैं तुम्हारी बज़्म में सोज़-ए-निहाँ तक कौन पहुँचेगा कोई मंदिर में बैठा है कोई मस्जिद में बैठा है बताओ जुस्तुजू-ए-ला-मकाँ तक कौन पहुँचेगा जहाँ हर वक़्त हो पेश-ए-नज़र बस मौत का खटका वहाँ फिर मक़्सद-ए-उम्र-ए-रवाँ तक कौन पहुँचेगा ये दुनिया खो रही है जल्वा-हा-ए-हुस्न दुनिया में तुम्हारे हुस्न और मेरे बयाँ तक कौन पहुँचेगा यक़ीन-ए-दुश्मनाँ तो है यक़ीन-ए-दोस्ताँ क्या है जहाँ मेरी नज़र पहुँची वहाँ तक कौन पहुँचेगा जिसे देखो वही 'राजे' तलबगार-ए-मसर्रत है हमारे रंज-ओ-ग़म की दास्ताँ तक कौन पहुँचेगा