बेकसी का अजीब आलम है हम-नवा है न कोई हम-दम है हाल-ए-दिल अपना मैं कहूँ किस से राज़-दाँ है न कोई महरम है जिस्म है चूर-चूर ज़ख़्मों से जिस का दरमाँ न कोई मरहम है कुछ बताओ तो माजरा क्या है होंट हँसते हैं आँख पुर-नम है हम भी पहुँचेंगे अपनी मंज़िल पर अज़्म-ए-रासिख़ है सई-ए-पैहम है गुल्सिताँ का मआल क्या होगा बाग़बाँ का मिज़ाज बरहम है कोई समझे अगर तो क्या समझे उन की हर एक बात मुबहम है ज़िंदगी कहती है जिसे दुनिया या तो शो'ला है या वो शबनम है तीरगी बढ़ रही है ऐ 'अंजुम' सब चराग़ों की लौ जो मद्धम है