चमन में जब बहार आई तो दीवाने मचल उट्ठे हुआ जब ज़िक्र-ए-चश्म-ए-मस्त पैमाने मचल उट्ठे हवा-ए-फ़स्ल-ए-गुल आई घटा घनघोर जब छाई चला यूँ दौर-ए-पैमाना कि मयख़ाने मचल उट्ठे यक़ीनन रब्त-ए-बाहम कोई हुस्न-ओ-इश्क़ में होगा जली जब शम्अ महफ़िल में तो परवाने मचल उट्ठे पिलाए जा अरे साक़ी अगर कुछ भी है मय बाक़ी तिरी दरिया-दिली देखी तो मस्ताने मचल उठे किसी जान-ए-वफ़ा का तज़्किरा उन्वान-ए-महफ़िल है बहारें झूम उट्ठीं और अफ़्साने मचल उठे कुछ इस अंदाज़ से ज़िंदाँ में पैग़ाम-ए-बहार आया कि दीवाने तो दीवाने थे फ़रज़ाने मचल उट्ठे चले अहल-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ में जब बयाबाँ को किया काँटों ने इस्तिक़बाल वीराने मचल उट्ठे बरहमन मस्त होता है फ़क़त नाक़ूस की लय पर सुनी बांग-ए-अज़ाँ तस्बीह के दाने मचल उट्ठे मिरे इख़्लास-ओ-जज़्ब-ए-दिल की ये तासीर है 'अंजुम' यगानों का तो क्या कहना है बेगाने मचल उट्ठे