तू जिस्म है तो मुझ से लिपट कर कलाम कर ख़ुशबू है गर तो दिल में सिमट कर कलाम कर मैं अजनबी नहीं हूँ मुझे रौंद कर न जा नज़रें मिला के देख पलट कर कलाम कर बाला-ए-बाम आने का गर हौसला नहीं पलकों की चिलमनों में सिमट कर कलाम कर क़ौस-ए-क़ुज़ह के रंग मयस्सर नहीं तो फिर दरिया की मौज मौज में बट कर कलाम कर जन्नत में या तो मुझ को पुराना मक़ाम दे या आ मिरी ज़मीं में पलट कर कलाम कर अनवर 'सदीद' आम सा बंदा है उस के साथ मिट्टी पे बैठ गर्द में अट कर कलाम कर