बे-लौस-ओ-रवादार तुम्हारी ही तरह हो दुश्मन भी मिरे यार तुम्हारी ही तरह हो मैं हाथ से फिर ज़हर भी खा लूँगा तुम्हारे गर वो भी असर-दार तुम्हारी ही तरह हो जाँ हँस के लुटा दूँगा मगर मुझ में जो उतरे ख़्वाहिश है वो तलवार तुम्हारी ही तरह हो लो फूल मिरी क़ब्र की ख़ातिर तो रहे ध्यान हर फूल की महकार तुम्हारी ही तरह हो 'अफ़रंग' ज़माने में ज़रूरी तो नहीं है हर शख़्स का किरदार तुम्हारी ही तरह हो