बेवफ़ा बा-वफ़ा नहीं होता वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता अब ज़माने में एक भी सज्दा ज़ेर-ए-ख़ंजर अदा नहीं होता सुनते आए हैं सर हथेली पर रखने वाला फ़ना नहीं होता चौक जाते थे बात है कल की अब निशाना ख़ता नहीं होता जो बुरा सोचते हैं औरों का उन का अपना भला नहीं होता बाद लुटने के ये हुआ मालूम राहज़न रहनुमा नहीं होता ज़िंदगी यूँ गुज़ारता है वो कुछ भी कह दो ख़फ़ा नहीं होता ज़र्द होने के बाद ऐ 'अशरफ़' कोई पत्ता हरा नहीं होता