बेवफ़ा हूँ न वफ़ादार हूँ मैं सच तो ये है कि अदाकार हूँ मैं सी दिए उस ने मिरे होंट तो क्या अब मुजस्सम लब-ए-इज़हार हूँ मैं मेरे हाथों में गड़े हैं काँटे फूल हूँ और सर-ए-दार हूँ मैं हर किरन डूब चली सूरत-ए-नब्ज़ किन अँधेरों में ज़िया-बार हूँ मैं ज़ेहन है सर पे लटकती तलवार किन अक़ाएद में गिरफ़्तार हूँ मैं इस लिए मुझ से ख़फ़ा है कोई उस का होते हुए ख़ुद्दार हूँ मैं