धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक चौबारों के सर पर ख़ाक शहर-ए-मलामत आ पहुँचा सारे मनाज़िर इबरत-नाक दरियाओं की नज़्र हुए धीरे धीरे सब तैराक तेरी नज़र से बच पाएँ ऐसे कहाँ के हम चालाक दामन बचना मुश्किल है रस्ते जुनूँ के आतिशनाक और कहाँ तक सब्र करें करना पड़ेगा सीना चाक