ग़ैर का वो हो गया अच्छा हुआ अपने हक़ में जो हुआ अच्छा हुआ इश्क़ का चर्चा हुआ अच्छा हुआ हुस्न भी मौज़ूअ' बना अच्छा हुआ हम किसी की चाह में जाँ से गए और रक़ीबों ने कहा अच्छा हुआ जब ज़ुलेख़ा मिस्र में रुस्वा हुई कह उठा हर दिल-जला अच्छा हुआ उस से उम्मीद-ए-वफ़ा कब थी हमें हो गया वो बेवफ़ा अच्छा हुआ कर के वो आराइश-ए-हुस्न-ओ-जमाल और भी काफ़िर-अदा अच्छा हुआ हम जो उस की चाह में रुस्वा हुए उस ने भी जल कर कहा अच्छा हुआ हिज्र की लज़्ज़त से वाक़िफ़ हो गए हम से उस का रूठना अच्छा हुआ वो मिरी मय्यत पे रोया फूट कर उस की यूँ टूटी अना अच्छा हुआ ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से तो हम जागे 'ज़फ़र' आशियाना जल गया अच्छा हुआ