ब-फ़र्त-ए-शौक़ हर गुल में तिरे रुख़ की ज़िया समझे अगर चटका कोई ग़ुंचा तो हम तेरी सदा समझे हमें देखो कि कब हम ने बिना-ए-आशियाँ डाली मुख़ालिफ़ अपने जब सारे गुलिस्ताँ की फ़ज़ा समझे बिल-आख़िर आज मेरा ज़ब्त-ए-उल्फ़त रंग ले आया मुझे ही जानिसार-ए-इश्क़-ओ-जाँबाज़-ए-वफ़ा समझे हमारे पास आया है मोअ'त्तर जब कोई झोंका उसे हम बे-तकल्लुफ़ तेरे दामन की हवा समझे हमें ले आया इस मंज़िल में तेरे इश्क़ का जज़्बा कि हम हर एक ज़र्रा मज़हर-ए-शान-ए-ख़ुदा समझे समझ से दूर है जाँ-दादगान-ए-इश्क़ की मंज़िल फ़ना की गोद में सरमाया-ए-राज़-ए-बक़ा समझे न होगा कोई हम सा रहरव-ए-राह-ए-वफ़ा 'जौहर' हम इस मंज़िल की हर आफ़त को सामान-ए-बक़ा समझे