भीड़ में ख़ुद को गँवाने से ज़रा सा पहले मुझ को मिलता वो ज़माने से ज़रा सा पहले हिज्र की हम को कुछ ऐसी बुरी आदत है कि हम ज़हर खा लें तिरे आने से ज़रा सा पहले गरचे पकड़े न गए दोस्तो लेकिन हम भी चोर थे शोर मचाने से ज़रा सा पहले कुछ नहीं सोचा परिंदों से शजर छीन लिए दश्त में शहर बसाने से ज़र्रा सा पहले धूल थे तुम मिरे क़दमों से लिपटने पे मुसिर ख़ाक थे चाक पे जाने से ज़र्रा सा पहले जा-ए-इबरत है कि फूटीं न तुम्हारी आँखें मुझे यूँ आँख दिखाने से ज़रा सा पहले