भूक इफ़्लास तक़ाज़ात से डर लगता है अब तो बच्चों के सवालात से डर लगता है ख़िश्त-बर-ख़िश्त चुना करता है दीवार-ए-अना दिल के इन कश्फ़-ओ-करामात से डर लगता है चुप रहो वाइ'ज़ो अब और न उलझाओ हमें आप के वा'ज़-ओ-ख़िताबात से डर लगता है न मिलूँ ख़ुद से कहीं ख़ौफ़ सदा रहता है अब तो बस ज़िक्र-ए-मुलाक़ात से डर लगता है गिर न जाऊँ मैं ज़माना की निगाहों से कहीं घर के बिगड़े हुए हालात से डर लगता है तीर-ओ-नश्तर की तरह दिल में उतरते हैं 'क़मर' तेरे अल्फ़ाज़ के आलात से डर लगता है