शब सामने खड़ी है उजालों का क़द बढ़ा दुश्मन बढ़ें तो चाहने वालों का क़द बढ़ा पीने के साथ साथ बढ़ेगी ये प्यास और सहबा को तेज़ कर के पियालों का क़द बढ़ा अपनी हुदूद-ए-नूर को पैहम वसीअ' कर तू चाँद बन चुका है तो हालों का क़द बढ़ा देखा उन्हें तो अपनी निगाहें सँवर गईं उन से जो बात की तो ख़यालों का क़द बढ़ा तुझ को अगर लहू की हिफ़ाज़त अज़ीज़ है अपनी ग़िज़ा में पाक निवालों का क़द बढ़ा तिफ़्लाना शोख़ियों का तुझे क्या जवाब दूँ बालिग़ हो और अपने सवालों का क़द बढ़ा तेरी बक़ा है तेरे हुनर ही में अब 'क़मर' जादा-ब-जादा अपने कमालों का क़द बढ़ा