भुला देना न अहल-ए-दिल को तुम जश्न-ए-बहाराँ में कि उन का ख़ून भी शामिल है ता'मीर-ए-गुलिस्ताँ में अभी तो शहर से लाए थे उन को इल्तिजा करके पहुँच जाएँ न दीवाने कहीं फिर से बयाबाँ में हुई जाती है क्यों मादूम रानाई बहारों की बनाई है ख़िज़ाँ ने रहगुज़र शहर-ए-निगाराँ में महल ख़्वाबों के गिरते जा रहे हैं यूरिश-ए-ग़म से मोहब्बत की कमी महसूस होती है दिल-ओ-जाँ में ज़रा सा फ़र्क़ जब शहर-ओ-बयाबाँ में नहीं बाक़ी तो फिर ये अज्नबिय्यत सी है क्यों दस्त-ओ-गरेबाँ में दिल-ए-कज-फ़हम कब समझेगा हालात-ए-ज़बूँ आख़िर सुकूँ की रौशनी मिलती नहीं ज़ेहन-ए-परेशाँ में 'सिराज' उस को नहीं बर्बादी-ए-गुलशन का ग़म कोई कोई तब्दीली शायद हो गई चश्म-ए-निगहबाँ में