बिछड़ के उस से अभी हूँ ज़िंदा मगर बहुत पुर-मलाल अब तक ख़बर नहीं वो सँभल चुका है या वो भी है ख़स्ता-हाल अब तक मुझे तिरा इंतिज़ार क्यों है ये दिल मिरा बे-क़रार क्यों है मिरे ख़याल-ओ-नज़र में देखो यही है बस इक सवाल अब तक कहा गया वक़्त सारे ज़ख़्मों का आप मरहम बनेगा इक दिन कहो कि ज़ख़्मों का क्यों नहीं हो सका भला इंदिमाल अब तक कहाँ ये मुमकिन कि भूल जाऊँ मैं ज़िंदगी की हसीन यादें बताऊँ कैसे कि हिज्र में हूँ मैं रंज-ओ-ग़म से निढाल अब तक मैं एक मशअ'ल मैं एक जुगनू मैं एक शम-ए-वफ़ा हूँ 'शाहीं' मिरे ख़ुदा ने रखा हुआ है मुझे तो यूँ ख़ुश-ख़याल अब तक