बिछड़े हुए दिलों को मिलाने से रख ग़रज़ आपस की नफ़रतों को मिटाने से रख ग़रज़ ताले ज़बाँ पे अपनी लगाने से रख ग़रज़ ईमान हर क़दम पे बचाने से रख ग़रज़ रह दुश्मनों से अपने ख़बर-दार हर घड़ी और दोस्तों के ऐब छुपाने से रख ग़रज़ दंगों के ख़ौफ़ से न दिखा बुज़दिली कभी अम्न-ओ-अमाँ की बेल चढ़ाने से रख ग़रज़ न देख ज़ात-पात रज़ाकार है अगर जलते हुए घरों को बुझाने से रख ग़रज़ हर गाम पर बुलंद अज़ाएम का दे सबक़ आँधी में भी चराग़ जलाने से रख ग़रज़ लाज़िम नहीं कि हर कोई हो जाए मुत्तफ़िक़ 'मुख़्लिस' तू फ़न के मोती लुटाने से रख ग़रज़