बिखर जाता है जब सपना तो मंज़र में नहीं रहता हवा का अक्स आईनों के जौहर में नहीं रहता उसे ता'बीर करना है तुलूअ'-ए-अश्क से लेकिन वो इक बहता उजाला है समुंदर में नहीं रहता जिसे मैं ढूँढता रहता हूँ तस्वीरों के मेले में वो रंगों का तलातुम अपने पैकर में नहीं रहता कोई मौज-ए-सराब उस में सरायत है कि अब अक्सर फ़ुसून-ए-लम्स का आलम गुल-ए-तर में नहीं रहता बहुत दिन हो गए उस से नहीं है राब्ता मेरा बहुत दिन हो गए दिल अपने महवर में नहीं रहता बुझा कर प्यास झीलों से परिंदे उड़ते जाते हैं कोई भी उम्र भर आँखों के सागर में नहीं रहता 'कफ़ील' आख़िर तलब ले जाएगी उस को वहाँ से भी मुसाफ़िर देर तक ठहरा खुले दर में नहीं रहता