बिखरा पड़ा था जा-ब-जा कचरा वजूद का हम छोड़ आए उस गली मलबा वजूद का हर रोज़ माँग माँग के लेता हूँ साँस भी बढ़ता ही जा रहा है ये क़र्ज़ा वजूद का कितनी शिकस्त-ओ-रेख़्त हुई कुछ नहीं पता मुझ को मिला नहीं अभी क़ब्ज़ा वजूद का ताज़ा हवा न रौशनी ना बाम-ओ-दर न छत मुझ को समझ न आ सका नक़्शा वजूद का इक उम्र हो गई उसे ख़ाली पड़े हुए बिगड़ा हुआ है इस लिए हुलिया वजूद का कुछ कड़वे घूँट चाहिएँ हर रात उस को अब यूँ और बढ़ गया है ये ख़र्चा वजूद का मेरे सबब ये ख़ाल-ओ-ख़द उस के बिगड़ गए सुनता हूँ सुब्ह शाम ये ता'ना वजूद का तुम ही बताओ कैसे चला उस का सिलसिला मुझ को तो मिल सका नहीं शजरा वजूद का इक शे'र-फ़हम शख़्स की ख़्वाहिश पे दोस्तो लो हम ने लिख दिया है ये नौहा वजूद का जूँ जूँ मैं सोचता हूँ तख़य्युल में उस का लम्स कुछ और बढ़ता जाता है नश्शा वजूद का मेरी तो एक बात भी सुनता नहीं ये दिल हाथों में अब नहीं रहा बच्चा वजूद का 'दानिश' मैं तंग आ गया इस बद-मिज़ाज से सँभले नहीं सँभलता है ग़ुस्सा वजूद का