बिकने वाले को भरोसा है बहुत बाज़ार पर फूल रक्खा रह गया बोली लगी है ख़ार पर चाल सूरज चल रहा है खेल है दिन-रात का धूप आँगन में उतर के चढ़ गई दीवार पर जब दवा देनी थी चारागर ने बस इतना किया इक नया इल्ज़ाम उस ने रख दिया बीमार पर हार में रहते हैं छुप के जीत जाने के सबक़ हौसला ज़िंदा है मातम क्यों मनाएँ हार पर लड़ के तूफ़ाँ से वो कश्ती पार लग जाती मगर ना-ख़ुदा को था यक़ीं ख़ुद से ज़ियादा धार पर हर ख़ुशी बे-रंग लगती दिल कहीं लगता नहीं दूर हम रहते हैं घर से जब किसी त्यौहार पर