बिन तिरी दीद के किस तरह गुज़ारा होगा तू न होगा तो मुझे किस का सहारा होगा आ गले मिल के अभी हिज्र का मातम कर लें किस को मालूम कहाँ मेल दोबारा होगा या तिरी दीद की ख़्वाहिश ने चमक बख़्शी है या रह-ए-ख़ाक ने चेहरे को निखारा होगा आज किस मुँह से गिला करते हो लुट जाने का मैं न कहता था मोहब्बत में ख़सारा होगा हर नए साल यहाँ बाँस नए उगते हैं इस जगह दफ़्न कोई दर्द का मारा होगा ज़िंदगी इज्ज़ के लम्हों में गुज़ारो अपनी वक़्त के शाह बनोगे तो ख़सारा होगा