बिना तेरे अधूरी है ख़ुशी सारे ज़माने की वजह कुछ भी नहीं है ज़िंदगी में मुस्कुराने की समझता ही नहीं कोई ज़बाँ मज़लूम लोगों की ज़रूरत आ पड़ी है अब क़लम काग़ज़ उठाने की लगाई थी जो उम्मीदें मिरी माँ ने कभी मुझ से करूँगी मैं यही कोशिश उन्हीं सब को निभाने की बचे हैं ग़म मुक़द्दर में नहीं बाक़ी ख़ुशी कोई करूँ कोशिश सभी से आँसूओं को मैं छुपाने की मुकम्मल हो नहीं सकती कभी भी 'आइशा' अब तो ख़बर कोई तो दी होती मुझे यूँ छोड़ जाने की