हर क़दम दुआओं में मेरे साथ चलती है तब लकीर क़िस्मत की ख़ुद-बख़ुद बदलती है ख़ुद-बख़ुद बढ़ेगा क़द हाथ में हुनर हो तो इक हुनर से ही सब को कामयाबी मिलती है जब से कामयाबी ने मेरे हैं क़दम चूमे क्या बताऊँ ये दुनिया कितना मुझ से जलती है बात ये ज़माने को क्यों समझ नहीं आती हो दुआ जो माँ की तो हर बला ही टलती है 'आइशा' नहीं मिलता अब सुकूँ बिना माँ के आज भी कमी उन की मुझ को बेजा खलती है