सफ़र कितना कठिन है पर निभा कर मैं दिखा दूँगा ग़ज़ल जो लिख रहा हूँ मैं वो जा जा कर दिखा दूँगा कठिन तो लग रहा है अब इरादा है जहाँ पर भी नज़र आएँ जो रस्ते पर सभी काँटे हटा दूँगा सुहाना सा नगर है वो मुझे जाना ज़रूरी है यही है अब मिरी कोशिश सभी वा'दे निभा दूँगा मुसलसल जो अक़ीदत से दुआ में है मिला सब कुछ नहीं जो कुछ मिला अब तक वहाँ जा कर बता दूँगा सफ़र जारी ज़माने में हुआ जिस के लिए है वो मिलेगी जब मुझे मंज़िल ख़ुशी से मुस्कुरा दूँगा ग़ज़ल लिखनी ग़ज़ल पढ़नी समझ ली कुछ 'जमाली' ने सिखाई है मुझे जिस ने उसे हर पल दुआ दूँगा