बिठा रक्खा है दरवाज़े पे क्यों दरबान होली में गले मिलता है हर इंसान से इंसान होली में बुढ़ापे में नज़र आई ख़ुदा की शान होली में बनी हैं उन से ज़ाइद उन की अम्माँ जान होली में हसीनों से भरा है रंग का मैदान होली में मिरी रखना तू ही अब आबरू भगवान होली में किसी रुख़ से कोई आशिक़ निकल कर जा नहीं सकता हसीनों ने लगा रक्खा है चूहे-दान होली में अभी रंगीन ख़ाली तन है मन भी लाल हो जाए तुम अपने हाथ से हम को खिला दो पान होली में ब-नाम-ए-रंग छू सकते हैं सब के गोरे गालों को वही मुश्किल जो कल तक थी वो है आसान होली में ससुर से सास से और सालियों के बाद सालों से गले मिल कर निकाले जाएँगे अरमान होली में जवानी में हुई शादी बुढ़ापे में हुआ बच्चा जुआ खेला दीवाली में हुआ चालान होली में सब इस सूरत से खेलें रंग 'नावक' एक दिल हो कर रहे फिर मर्द औरत की न कुछ पहचान होली में