बुलबुल कहीं है फूल कहीं बाग़बाँ कहीं अल्लाह फिर दिखाए न ऐसा समाँ कहीं गुम-गशतगान-ए-शौक़ का आलम न पूछिए रहबर कहीं है राह कहीं कारवाँ कहीं कर तो रहे हैं वो मिरी बर्बादियों की फ़िक्र ख़ुद उन की घात में न हों बर्बादियाँ कहीं हँसते हो मेरे दामन-ए-सद-चाक पर हँसो परचम बनें न फ़त्ह का ये धज्जियाँ कहीं अंजाम-ए-ज़ब्त-ए-दर्द है दुनिया के सामने बिजली कहीं गिरी तो चलीं आँधियाँ कहीं ये भी ख़बर नहीं कि गया क़ाफ़िला किधर हम तो वहीं के हो रहे ठहरे जहाँ कहीं छुट जाए ऐ 'नज़ीर' न दामन यक़ीन का गुमराह कर न दें तुझे वहम-ओ-गुमाँ कहीं