बुत-ख़ाना संग-ए-राह है जिस कू-ए-यार का काबा भी इक निशाँ है उसी रहगुज़ार का अदना सा अक्स है रुख़-ए-रंगीन-ए-यार का आलम बना हुआ है मुरक़्क़ा बहार का मुझ को तो शौक़-ए-सज्दा में ये भी नहीं ख़बर संग-ए-दर-ए-रक़ीब है या क़स्र यार का रहमत भी तेरे साथ है बख़्शिश भी तेरे साथ फिर ख़ौफ़ क्या है पुर्सिश-ए-रोज़-ए-शुमार का हो जाएँ एक काफ़िर-ओ-दीं-दार किस तरह जल्वा अलग अलग है रुख़-ओ-ज़ुल्फ़-ए-यार का ज़ाहिद तमाम तक़्वा-ओ-तामात छोड़ दे क़ाइल अगर है रहमत-ए-परवरदिगार का तस्वीर भी न उस की तसव्वुर में खिंच सकी अदना सा ये कमाल है शोख़ी-ए-यार का फ़िक़रे ग़ज़ब के लिक्खे हैं ख़त के जवाब में गोया क़लम से काम लिया जुल्फ़िक़ार का कर दूँ न ग़र्क़-ए-जाम दिल-ए-बे-क़रार को झगड़ा चुका ही दूँ न दिल-ए-बे-क़रार का शान-ए-करम को उस की गवारा नहीं कभी मायूस हो के लौटना उमीद-वार का पीर-ए-मुग़ाँ सा पीर हो 'शाग़िल' का मो'तक़िद फिर ज़िक्र-ओ-शग़्ल देख मय-ए-ख़ुश-गवार का