चाक पर एक सर पड़ा हुआ है या'नी बार-ए-हुनर पड़ा हुआ है ढूँढता फिर रहा हूँ गलियों में और बदन अपने घर पड़ा हुआ है अक्स आईने में नहीं मिलता पर्दा तो आँख पर पड़ा हुआ है ज़ख़्म दोगे तो ख़र्च होगा नाँ हौसला दश्त-भर पड़ा हुआ है सर उठाने के बा'द इल्म हुआ इश्क़ दहलीज़ पर पड़ा हुआ है