राज़-ओ-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल बना दिया उन की नज़र ने दिल को मिरे दिल बना दिया इस मल्गजे लिबास पे आराइशें निसार तुम ने तो सादगी को भी क़ातिल बना दिया बर्क़-ओ-शरर को दे के तपिश और इज़्तिराब जो बच रहा उसी को मिरा दिल बना दिया चारागरी ने आप की छू कर निगाह से हर आबले को दर्द भरा दिल बना दिया अब इन तजल्लियों का हो किस तौर से नुफ़ूज़ जिन को हया ने पर्दा-ए-हाइल बना दिया दिल एक मुश्त-ए-ख़ाक था तेरी निगाह ने मिट्टी को सोज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल बना दिया तेरे ज़ुहूर-ए-हुस्न ने तहलील-ए-नूर की अजज़ा-ए-मुंतशिर को मिरा दिल बना दिया आग़ाज़-ए-रब्त में निगह-ए-जाँ-नवाज़ ने दिल को तिरी उमीद के क़ाबिल बना दिया आँखों को इंतिज़ार की बेदारियाँ मिलीं सोज़-ए-नफ़स को गर्मी-ए-महफ़िल बना दिया फ़ितरत को है गिला कि मिरे इज़्तिराब ने हासिल को बर्क़ बर्क़ को हासिल बना दिया जब शौक़ ताज़ा-दम था तो मंज़िल भी राह थी जब थक गए तो राह को मंज़िल बना दिया 'सफ़दर' ये उन की फ़ित्ना-ख़िरामी को देखिए फूलों पे पाँव रख के उन्हें दिल बना दिया