चारों ओर अंधेरा निकला जाने कहाँ सवेरा निकला सोच की तह में सोच थी शामिल हर घेरे में घेरा निकला उस के दिल में अपना क्या था कुछ तेरा कुछ मेरा निकला गाँव से इक नागिन निकली शहर से एक सपेरा निकला जो भी आया फिर नहीं लौटा दिल भी कैसा डेरा निकला अपना 'रफ़ी' इस शहर में जाना जोगी वाला फेरा निकला