काम भी हम अजीब करते हैं चाहे जिस को रक़ीब करते हैं करके ख़ुद ज़िक्र उन से मिलने का राज़-दाँ को रक़ीब करते हैं बात कुछ तो ज़रूर है वर्ना कब हर इक को हबीब करते हैं किस तरह दूरियाँ ये होंगी दूर दूर जा कर क़रीब करते हैं इश्क़ की दास्ताँ सुनाते हुए ज़िक्र-ए-दार-ओ-सलीब करते हैं उन के ख़्वाबों में और हम ऐ 'ओवैस' चाह ये ख़ुश-नसीब करते हैं