चाह कर भी न कोई उन से गिला रखता हूँ अपने जज़्बात किसी तरह दबा रखता हूँ अपनी तकलीफ़ का करता नहीं इज़हार कभी अश्क आँखों में तो ग़म दिल में छुपा रखता हूँ सर-कशी उस की भला कैसे सहूँ मैं हर बार मैं भी इंसान हूँ कुछ मैं भी अना रखता हूँ लज़्ज़त-ए-दर्द है वो जिस ने मुझे रोका है वर्ना मैं अपने हर इक ग़म की दवा रखता हूँ कुछ सुकूँ पाता हूँ इस वास्ते तन्हाई में गिर्या-ओ-नाला-ओ-फ़रियाद बपा रखता हूँ सख़्त मुश्किल में भी मायूस नहीं होता कभी मैं अँधेरों में भी उम्मीद-ए-ज़िया रखता हूँ देख 'तनवीर' मिरे हाल-ए-परेशाँ को देख देख क्या इश्क़-ओ-मोहब्बत का सिला रखता हूँ