चहार सम्त कहीं दाएँ बाएँ लगती हैं सुकूत तोड़ना हो तो सदाएँ लगती हैं बुज़ुर्ग ऐसे भलाई के पेड़ हैं जिन पर अगर समर न लगे तो दुआएँ लगती हैं कि इन के होने से घर भी चहकने लगता है मुझे तो बेटियाँ भी फ़ाख़ताएँ लगती हैं बताया जाए अगर दिल का दर्द रोकना हो तो एक माह में कितनी दवाएँ लगती हैं हूँ इक पहाड़ की चोटी पे आज-कल आबाद मैं घर से निकलूँ तो दिल से घटाएँ लगती हैं मैं इस लिए भी जलाता हूँ अपना दिल 'एजाज़' कि इस दिए को ज़रा कम हवाएँ लगती हैं