ये हुस्न-ए-तबस्सुम ये किरन देख रही है दुनिया तिरा अंदाज़-ए-सुख़न देख रही है शायद कि है ख़ुर्शीद की निय्यत में ख़राबी क्यों धूप गुलाबों के बदन देख रही है अरमान-ए-सफ़र धूप में जीने का है आदी साए की तरफ़ दिल की थकन देख रही है है मंज़र-ए-हैरत कि अँधेरों को मिरी आँख पहने हुए किरनों का कफ़न देख रही है जिस रोज़ से आँखें मिरी अश्कों से भरी हैं हैरत से उन्हें दिल की जलन देख रही है आओ कि लहू दान करें इस के लिए हम हसरत से हमें अर्ज़-ए-वतन देख रही है 'सज्जाद' है बे-कार तिरा हुस्न-ए-तकल्लुम दुनिया तिरे माथे पे शिकन देख रही है