चाहतों को नित-नए अंदाज़ से देखा करो वस्ल की राहत में फ़ुर्क़त का समाँ लिक्खा करो क्या पता उन की भी लग जाए कोई क़ीमत कहीं संग-रेज़ो को भी हीरों की तरह परखा करो ज़ात के सहरा में कर पाओगे क्या अपनी तलाश उम्र भर पीछे सराब-ए-ज़ीस्त के भागा करो इक हवा-ए-तुंद का झोंका उड़ा ले जाएगा रेत के सीने पे कोई नाम मत लिक्खा करो तुम बहुत घबरा गए घर की वीरानी से 'फ़ैज़' अब हुजूम-ए-शहर में तन्हाइयाँ ढूँडा करो